16 साल में शादी, 7 दिन में विधवा फिर जेल, खुशी दुबे को थाने में हुई खून की उल्टियां, जेल में 30 महीने सास के साथ थी कैद

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16 saal me shadi or 7 din baad vidva hui thi khusi Dubey
16 saal me shadi or 7 din baad vidva hui thi khusi Dubey (Image Credit: Social Media)

खुशी दुबे… जिस पर 30 महीने पहले पुलिस पर हमला करने, डकैती करने साथ ही पुलिसवाले की हत्या समेत 16 गंभीर धाराएं लगाई गईं। सभी आरोप उस परिवार के गुनाहों के लिए जहां गए हुए उसे सिर्फ 48 घंटे हुए थे। खुशी की गिरफ्तारी पर लगातार सवाल उठते रहे, राजनीति होती रही। पर अब पूरी घटना को जानने-समझने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी है।

जेल से रिहा होने के बाद दैनिक भास्कर उनसे मुलाकात करने पहुंचा। उसने अपनी जिंदगी के बीते 3 सालों के बारे में हमसे बात की। खुशी ने जो हमको बताया उसके तीन हिस्से हैं। पहला, विकास दुबे के भतीजे अमर दुबे से उसके रिश्ते की कहानी। दूसरा, बिकरू गांव में उस दिन क्या हुआ था और तीसरा, जेल में बिताए 30 महीने और उसकी जमानत की कहानी। चलिए तीनों पहलुओं को शुरू से जानते हैं…

29 जून 2020, कानपुर का रतनपुर इलाका। रात के करीब 10 बजे थे। डीजे पर जोर-जोर से गाना बज रहा था, ‘छोटे-छोटे भाइयों के बड़े भइया, आज बनेंगे किसी के सइंया।’ शादी के लाल जोड़े में खुशी दुबे ठुमके लगा रही थी। इस वक्त खुशी की उम्र साढ़े सोलह साल थी। इतनी कम उम्र में शादी होने के सवाल पर खुशी की बहन बताती है, “हमारे पिता का नाम श्यामलाल है। वो गाड़ियों पर लिखने और पेंट करने का काम करते हैं। उस वक्त उनकी तबीयत बहुत खराब रहने लगी। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। पता चला कि उनके फेफड़ों में दिक्कत है और ऑपरेशन करना होगा।”

 

खुशी के पिता को अब अपनी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं था। घर में कमाई का भी कोई और जरिया नहीं था। उन्हें खुशी की चिंता सताने लगी। इसलिए उन्होंने तय किया कि वो खुशी की शादी कर देंगे। उन्हें लगा कि खुशी की एक अच्छे लड़के से शादी हो जाएगी तो उसकी जिंदगी सुधर जाएगी। इसलिए उन्होंने खुशी के लिए लड़के की तलाश शुरू की। तभी एक जानने वाले ने उनसे विकास दुबे से मुलाकात करने को कहा।

 

खुशी के मां-बाप अपनी बेटी की शादी की उम्मीद लेकर बिकरू गांव पहुंचे। वहां विकास से मुलाकात कर बेटी की शादी करवाने की बात कही। विकास ने खुशी के पिता को भरोसा दिलाया कि उसकी शादी वो करवा देगा। कुछ दिन बीते, खुशी के घर विकास दुबे का फोन आया कि वो अपने भतीजे अमर दुबे से खुशी की शादी करवाना चाहता था। पूरे परिवार के साथ अमर और खुशी की मुलाकात हुई और शादी तय हो गई।

 

खुशी का परिवार कुछ वक्त रुक कर ये शादी करना चाह रहा था, क्योंकि उन्हें पैसों का इंतजाम करना था। लेकिन विकास दुबे ने शादी जल्द से जल्द करने का दबाव बनाया। उसने परिवार से कहा कि शादी का खर्च वो करेगा, उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ 15 दिन बाद खुशी की अमर दुबे से शादी हो गई। खुशी ब्याह कर अमर के घर बिकरू पहुंची। दो दिन बीते, घर में सब खुश थे। शादी के बाद वाली सभी रस्में हो रही थीं। रिश्तेदार खुशी से मिलने आ रहे थे।

2 जुलाई 2020. रात के करीब 9 बजे थे। दिन भर मुंह दिखाई की रस्म चली। खुशी काफी थक गई थी, तो आराम करने अपने कमरे में गई। उसकी आंख हल्की सी लगी थी कि बाहर से कुछ आवाजें आईं। उसे लगा शादी का सीजन चल रहा है तो लोग पटाखे दगा रहे होंगे। खुशी बताती है कि कुछ देर तो मैंने वो आवाजें सुनीं उसके बाद मैं थकी हुई थी तो सो गई।

 

दरअसल इस रात करीब 12 बजकर 45 मिनट पर गैंगस्टर विकास दुबे की तलाश में पुलिस की एक टीम बिकरू गांव पहुंची। लेकिन वहां पहले से ही विकास और उसके गुर्गे घात लगाए बैठे थे। घर पर पुलिस को रोकने के लिए JCB लगाई थी। पुलिस के पहुंचते ही छतों पर चढ़े बदमाशों ने उन पर गोलियां चलानी शुरू कर दी। कुछ ही देर में सीओ देवेंद्र मिश्रा समेत 8 पुलिसकर्मी मारे गए।

 

3 जुलाई 2020. बिकरू गांव समेत पूरे देश को इस घटना ने हिलाकर रख दिया। पुलिस भी अब एक्शन में आ चुकी थी। सबसे पहले पुलिस ने विकास ने घटना में शामिल प्रेम कुमार पांडेय का एनकाउंटर किया, इसके बाद अतुल दुबे को मार गिराया। यहीं से एनकाउंटर पर एनकाउंटर शुरू हो गए। इसके ठीक बाद पुलिस ने हमीरपुर में खुशी के पति अमर दुबे को भी मार दिया। अमर अपने चाचा विकास दुबे के साथ इस पूरे कांड का एक बड़ा हिस्सा था। इसके बाद पुलिस ने विकास दुबे को भी एनकाउंटर में ढेर कर दिया।

 

एक तरफ लगातार एनकाउंटर्स हो रहे थे। दूसरी तरफ 4 जुलाई 2020 को पुलिस खुशी दुबे के घर पहुंची। उससे कहा कि कुछ पूछताछ करने के लिए उसे थाने आना होगा। पुलिस खुशी को थाने ले गई। खुशी बताती है, “मेरे साथ ये पूछताछ पूरे 4 दिन चली। इन 4 दिनों में मैंने जो झेला है उसे याद करके आज भी सहम जाती हूं। इस दौरान मेरी तबीयत भी खराब हो गई थी। मुझे खून की उल्टियां होने लगीं, नाक से भी खून निकलने लगा।

 

पुलिस ने खुशी से कहा था कि जो तुम्हें पता है वो बता दो, उसके बाद हम खुद तुम्हें घर छोड़कर आएंगे। लेकिन 8 जुलाई 2020 को पुलिस ने खुशी को घर छोड़ने की बजाय जेल भेज दिया। पुलिस का आरोप था कि जब अमर दुबे पुलिसवालों पर गोलियां चला रहा था तो खुशी उसे कारतूस उठाकर दे रही थी। साथ ही गैंग को उन पर हमला करने के लिए उकसा रही थी। वो विकास दुबे के गैंग की अहम मेंबर है।

जेल में कैद होने की बात पर खुशी बताती हैं, “जब मैं जेल पहुंची तो पता ही नहीं था किस जुर्म में मुझे वहां बंद कर दिया गया। मम्मी की बहुत याद आती थी। मैं दिन भर रोती रहती। मेरे सिर में और पेट में बहुत दर्द होता था पर उसकी दवा देने वाला वहां कोई नहीं था। कुछ दिन मैं ऐसे ही गुमसुम बैठी रही। उसे बाद मेरी मुलाकात अमर दुबे की मां यानी मेरी सास से हुई।”

 

खुशी कहती हैं कि जिस तरह मेरा कोई दोष नहीं था मेरे सास-ससुर ने भी कुछ गलत नहीं किया है। सास जेल में मेरे साथ ही थीं। वो दिन भर मुझसे बात करतीं, मुझे हिम्मत देतीं। उन्होंने ही मुझे यकीन दिलाया कि मैं एक दिन यहां से बाहर निकल जाऊंगी।

 

एक तरफ मेरी सास साथ थीं तो दूसरी तरफ मेरे मां-बाप जमानत के लिए जगह-जगह ठोकरें खा रहे थे। उन्होंने जमानत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। करीब 95 तारीखों पर सुनवाई हुई। जब भी मैं सुनवाई पर अपने मां-बाप और बहन को देखती तो कुछ बोल नहीं पाती। बस उन्हें गले से लगाकर रोती रहती।

 

हर तारीख के बाद मैं हिम्मत हारने लगी थी लेकिन फिर भी मन में एक उम्मीद थी कि मैं गलत नहीं हूं तो मेरे साथ न्याय जरूर होगा। आखिरकार 30 महीने बाद कोर्ट में मुझे जमानत दे दी। पर मेरी ये लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। मुझे अभी बाइज्जत बरी होना है।

 

वकील बनूंगी ताकि अपने जैसे बेकसूरों को न्याय दिला पाऊं

अपनी जिंदगी में आगे क्या करना है और ससुराल वापस जाना है या नहीं इस सवाल पर खुशी कहती है, “मैं जानती हूं कि मेरे सास-ससुर ने कुछ नहीं किया क्योंकि उस दिन वो मेरे साथ घर में ही थे। इसलिए चाहती हूं कि उन्हें भी जल्द से जल्द जमानत मिल जाए। लेकिन मैं अब उस घर में कभी वापस नहीं जाना चाहती।

 

वो आगे कहती है कि मैं अब अपने मां-बाप के साथ रहकर ही पढ़ाई करना चाहती हूं। यह सब होने से पहले तो मुझे बायोलॉजी बहुत पसंद थी और मैं एक डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन अब मुझे वकील बनना है। जेल में कई ऐसे लोग मिले जो मेरी ही तरह किसी दूसरे के किए अपराध की सजा काट रहे हैं। मैं वकील बनकर ऐसे ही लोगों को न्याय दिलाना चाहती हूं।

घर के बाहर CCTV देखकर ऐसा लगता मैं अब भी कैद हूं

खुशी जब रिहा होकर घर पहुंची तो उसी रात ही उसके घर के आस-पास CCTV कैमरे लगा दिए गए। इस पर वो कहती है कि जब मैंने कोई अपराध किया नहीं तो पता नहीं क्यों मुझ पर नजर रखी जा रही है। अपने घर के पास कैमरे देखकर लगता है कि जैसे मैं अब भी कहीं कैद हूं।

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