नई दिल्ली:- 1965 मे भारत व पाकिस्तान के बीच मे टैंको से युद्ध हुआ। जिसमे पाकिस्तान ने जंग के लिए अमेरिकी पैटन टैंक इस्तेमाल किए। टैंक के दम पर जीतने के सपने और गलत इरादे भारतीय सेना के जवानों ने बर्बाद कर दिए। आज 16 सितम्बर के दिन लेफ्टिनेंट कर्नल ए बी तारापोर देश के लिए शहीद हुए थे।
वजीराली पर किया कब्ज़ा- 11 सितम्बर 1965 को अर्देशिर बुर्जोरजी तारापोर 17 हॉर्स के कमांडिंग ऑफिसर को सियालकोट जीतने को कहा गया था। आपको बता दें कि सियालकोट सेक्टर पाकिस्तान के पंजाब शहर मे है। कर्नल तारापोर के सैनिक चविंडा के तरफ जा रहे थे कि पाकिस्तान ने वजरीली की तरफ से उन पर हमला कर दिया। फिर तारापोर की सेना ने जंग को संभाल लिया और पाकिस्तान के पैटन टैंको को बर्बाद कर दिया। जंग खत्म होने ने बाद भारतीय सेना ने वजरीली पर कब्ज़ा कर लिया, इसके बाद लेफ्टिनेंट कर्नल तारापोर घायल हो गए।
टैंक के क्यूपोला से बाहर निकलकर बढ़ा रहे थे होंसला- घायल होने के बाद भी तारापोर लड़ते रहे। उनके सैनिक जहाज़ लेकर जा रहे थे। उनका अगला निशाना चाविंडा था। सूत्रों से पता चला कि तारापोर अपने टैंक के क्यूपोला से चेहरा बाहर निकाल कर अपने सैनिको का होंसला बढ़ा रहे थे। उनको ऐसा करते देख सभी कमांडर ने अपना चेहरा बाहर निकाल लिया। पाकिस्तान की टैंको को बर्बाद करने के लिए भारतीय टैंक धूल, धुएँ, और बारूद के गुबार के बीच मे से जा रहे थे। तारापोर का इरादा था कि पैटन टैंको पर हमला कर तबाह करना है।
एक एक करके बर्बाद कर दिए पैटन टैंक- तारापोर की जंग देख पाकिस्तान मे हड़बड़ी हो गई। फिर पाकिस्तान की सैनिको ने तारापोर को निशाना बना लिया और कमांडिंग ऑफिसर को घेर लिया। तारापोर इतने हिम्मत वाले थे कि वह खुद ही पैटन टैंक को खत्म करने के लिए काफी थे। उन्होंने घायल की हालत मे भी 60 पैटन टैंक तबाह कर दिए। वह 61वा पैटन टैंक उड़ाने ही वाले थे कि एक आग का गोला उनके टैंक पर आकर गिर गया। जिसकी वजह से उनके टैंक मे धमाका हुआ और आग लग गई। और देश के वीर जवान शहीद हो गए।
गोलो के बीच मे हुआ अंतिम संस्कार- ए बी तारापोर चाहते थे कि जब वह शहीद हो तो उनका अंतिम संस्कार रणक्षेत्र मे ही किया जाए। परमवीर चक्र से हुए सम्मानित, लेफ्टिनेंट ए बी कर्नल तारापोर को उनकी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र देकर किए गए सम्मानित। ए बी तारापोर का जन्म 18 अगस्त 1923 मुंबई मे हुआ। फिर तारापोर 1942 मे हैदराबाद की भारतीय सेना मे चले गए। यहाँ तक कि उन्होंने देश की दूसरी जंग मे भी अपनी वीरता दिखाई। फिर उनको सेना की पूना हॉर्स रेजिमेंट मे भेज दिया।
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